![]() ![]() जब तब छेड़ जाती है उसकी यादों की पुरवाई सूखे ज़ख्म भी रिसने लगते हैं किसी को चाहना बड़ी बात नहीं मसला तो उसे भुलाने में है यूँ तो तोड़ दिए भरम सारे न वो याद करे न तुम फिर भी इक कवायद होती है आँख नम हो जाए बड़ी बात नहीं मसला तो उसे सुखाने में है ... |
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