![]() ![]() ओ उम्र के तीसरे पहर में मिलने वाले ठहर, रुक जरा, बैठ , साँस ले कि अब चौमासा नहीं जो बरसता ही रहे और तू भीगता ही रहे यहाँ मौन सुरों की सरगम पर की जाती है अराधना नव निर्माण के मौसमों से नहीं की जाती गुफ्तगू स्पर्श हो जाए जहाँ अस्पर्श्य बंद आँखों में न पलता हो जहाँ कोई सपना बस स... |
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