![]() ![]() मेरी उदास कविताओं कोजीवंत बना देती हो तुमपढ़ने के अनोखे अंदाज सेजीने की मृत इच्छा कोपल भर में बदल देती होकंधे पर हाथ भर रख करकिसी नास्तिक को भीमंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ा दोईश्वर की भेजी एक दूत हो तुमऔर मैं ख़ुद के होने की वजह ढूँढ़तालौह पुरुष होने का ढोंग रचता हुआहार जाता हू... |
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