![]() ![]() कभी कभी ये जीवन एक आखेट की भाँति प्रतीत होता है और मैं ख़ुद को एक असफल आखेटक के रूप में पाता हूँ। मेरी चाहतें, मेरी ख़्वाहिशें, मेरा लक्ष्य एक मृग की भाँति है। एक ऐसा मृग जो दिखाई तो देता है पर जब मैं उसे पकड़ने जाता हूँ तब वो गायब हो जाता है। मैं वर्षों से उसके पीछे भाग रहा हूँ... |
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