Blog: रचनाधर्मिता |
![]() ![]() जी को जी भर रो लेने दोआँखों को जल बो लेने दोकिसी और को बतलाना क्यामन थक जाये सो लेने दोकिसने समझी पीर पराईफिर क्यों सबसे करें दुहाईजिससे मन विचलित है इतनाहै अपनी ही पूर्व - कमाईछिछले पात्र रीतते-भरतेक्षण-क्षण, नये रसों में बहतेतृष्णा की इस क्रीड़ा को हमशोक-हर्ष से देखा ... Read more |
![]() ![]() यदि तुम्हें मैं भूल पाता,जगत के सारे सुखो को स्वय के अनुकूल पातायदि तुम्हे मै भूल पाता।भूल पाता मैं तुम्हारी साँस की पुरवाइयों को,कुन्तलों में घने श्यामल मेघ की परछाइयों को,भटकता हूँ शिखर से लेकर अतल गहराइयों तक,खोजता हूँ कहीं अपनी चेतना का कूल पातायदि तुम्हें मैं भू... Read more |
![]() ![]() रोज सवेरे चाय बनाताखुद सारे बर्तन मलता हूँकितना प्यार तुम्हें करता हूँजब तुम प्रायः सोई रहतीसपनों में ही खोई रहती बच्चों का सब टिफिन सजाताफिर उनको बस पर बैठाताआहट से तुम जाग ना जाओमन ही मन डरता रहता हूँकितना प्यार तुम्हें करता हूँ।आहट होती अंगड़ाई कीचाय लिये मैं दौ... Read more |
![]() ![]() जबसे तूने गाँव के बाहर डाला अपना डेराडरी-डरी सी शाम गई हैसहमा हुआ सवेराशहर तू कितना बड़ा लुटेराचिंतित गाँव दुहाई देता, करता रोज़ हिसाबकितने बाग कटे, सूखे कितने पोखर तालाबकांक्रीट के व्यापारी ने अपना जाल बिखेराशहर तू कितना बड़ा लुटेराखेतों के चेहरों पर मल कर कोलतार क... Read more |
![]() ![]() ठगिनी माया खा गई, पुण्यों की सब खीरतन जर्जर मन भुरभुरा, आये याद कबीरआँसू तो चुक-चुक गये, लेकिन चुकी न पीरजनम गँवाया व्यर्थ में, रह-रह उठे समीरबन-पर्वत-नदियाँ-पुलिन, कहीं न मिलती ठाँवप्रियतम की नगरी कहाँ, कहाँ प्रीति का गाँवदुश्कर प्रीति निबाहना, जैसे पानी-रंगजल की अंतिम ... Read more |
![]() ![]() रिसने लगा है पानीपसीजी दीवारों सेआँखों से अबऔर आँसू नहीं पिये जातेपहले रंग उतराऔर अब उखड़ने लगा हैपलस्तर भीदीवार की कुरूपताउजागार हो रही है धीरे-धीरेव्यर्थ-आशा के गारे मेंजकड़ी हैंकसमसाती ईंटेंकब तक और कहाँ तक?जीवन!मखमल में लिपटाकूड़े का ढेरकृत्रिम गन्धों से सुवासि... Read more |
![]() ![]() इस बार आओगे तो पाओगे...नये फ्रेम में लगा दी हैमैनें अपनी और तुम्हारी तस्वीर,निहारती हूँ मेरे कन्धे पर रखेतुम्हारे हाथऔर तुम्हारे चेहरे की मुस्कान को...इस बार आओगे तो पाओगेबालकनी में रखे हैंमैंनें सात गमलेतुम्हारी सुधियों के पौधे लगाकररोज़ सींचती हूँ उन्हेंअपने स्पर्... Read more |
![]() ![]() कोयल की कूकों में शामिल है ट्रैक्टर का शोरधान-रोपाई के गीतों की तान हुई कमजोरगाँव की बदल गई है भोर।कहाँ गये सावन के झूले औऽ कजरी के गीतमन के भोले उल्लासों पर है टीवी की जीतइतने चाँद उगे हर घर में चकरा गया चकोरसमाचार-पत्रों में देखा बीती नागपचइयाँगुड़िया ताल रंगीले-डण्... Read more |
![]() ![]() एक बूँद गहरा पानी भीसौ जलयान डुबो सकता हैहाँ! ऐसा भी हो सकता हैपीड़ा की अनछुई तरंगेजब मानस-तट से टकरातींकुछ फेनिल टीसें बिखराकरआस-रेणु भी संग ले जातींइस तरंग-क्रीड़ा से मन कोबहला तो लेता हूँ फिर भीधैर्य-पयोनिधि का इक आँसूसौ बड़वानल बो सकता हैहाँ! ऐसा भी हो सकता हैतथाकथित ... Read more |
![]() ![]() आज कर दूँ स्वयं अपने हाथ से श्रृंगार सारा,तुम कहो तो...वेणियों में गूँथ दूँ सुरलोक की नीहारिकायें,माँग-बेदी में सजा दूँ कलानिधि की सब कलायें,और माथे पर लगा दूँ भोर का पहला सितारा,तुम कहो तो...पुष्पधन्वा का बना दूँ चाप इस भ्रू-भंगिमा को,करुँ उद्दीपित दृगों में स्वप्नदर्शी ... Read more |
![]() ![]() जितना अधिक पचाया जिसनेउतनी ही छोटी डकार हैबस इतना सा समाचार हैनिर्धन देश धनी रखवालेभाई चाचा बीवी सालेसबने मिलकर डाके डालेशेष बचा सो राम हवालेफिर भी साँस ले रहा अब तककोई दैवी चमत्कार हैबस इतना सा समाचार हैचादर कितनी फटी पुरानीपैबन्दों में खींचा-तानीलाठी की चलती मन... Read more |
![]() ![]() मेरे मित्रमेरे एकान्तसस्मित और शान्तकितने सदय होसुनते हो मन कीटोका नहीं कभीरोका भी नहीं कभीतुम्हारे साथ जो पल बीतेसम्बल है उनकाहम रहे जीतेमेरे मित्र मेरे एकान्तआज बहुत थका सालौटा हूँ भ्रमण सेपदचाप सुनता हूँकल्पित विश्रान्ति काया अपनी भ्रान्ति कामेरे मित्रमेरे ... Read more |
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