मित्रो, मेरे पहले एकल लघुकथा संग्रह ‘सफ़र में आदमी’में संग्रहित लघुकथाओं को एक-एक कर जब मैंने अपने इस ब्लॉग ‘सृजनयात्रा’पर देना प्रारंभ किया था तो सोचा नहीं था कि पाठक मेरी लघुकथाओं को इतनी तरज़ीह देंगे… पर मुझे खुशी है कि नेट की दुनिया के पाठक निरंतर मेरे इस ब्लॉग पर प... |
मित्रोलेखक की आँख हर समय अपने समय, समाज और परिवेश पर लगी रहती है। वह वातावरण और परिवेश जहाँ उसका अधिकांश समय व्यतीत होता है, उसे प्रभावित करता रहता है। वह उससे बच नहीं सकता। मेरे जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा सरकारी दफ़्तर में गुज़रा होने के कारण मुझे मेरी बहुत-सी रचनाओं के ब... |
मित्रोकभी-कभी हमें अपनी नई लिखी कोई रचना अधिक संतोषजनक नहीं लगती। ऐसा नहीं है कि वह रचना नहीं होती, पर हम उसमें कुछ और अच्छा और श्रेष्ठ लाने की कोशिश करते रहते हैं। एक ज़माना था कि ‘धर्मयुग’ साप्ताहिक में छपना बहुत बड़ी बात समझी जाती थी। हर नया-पुराना लेखक उसमें छपने को ल... |
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February 8, 2012, 7:51 pm |
मित्रोलघुकथा लिखना मेरे लिए कहानी लिखने से अधिक दुष्कर कार्य रहा है। बहुत सी लघुकथाएं लिखीं और फाड़ दीं। कारण, मैं खुद ही उनसे संतुष्ट नहीं था। कई बार तो मित्रों को अच्छी लगने वाली और प्रकाशित हो चुकी लघुकथाओं को भी मुझे खारिज करना पड़ा। रमेश बत्तरा मेरे अच्छे मित्रों म... |
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January 4, 2012, 10:04 pm |
मित्रोअपनी लघुकथा ‘कड़वा अपवाद’ को यहाँ प्रस्तुत करते हुए मुझे विक्रम सोनी जी की याद हो आ रही है और याद आ रही है, उनकी पत्रिका ‘लघु आघात’। विक्रम सोनी जी जितने सशक्त लघुकथा लेखक रहे, उतने ही अच्छे एक संपादक भी रहे हैं। 'लघु आघात' के माध्यम से उन्होंने हिन्दी लघुकथा लेखन क... |
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December 20, 2011, 9:34 pm |
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