Blog: ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र |
![]() ![]() इंसान तुम्हारी फुफकार से भयभीत हैं आज सर्प भी ढूंढ रहे हैं अपने बिल क्योंकि जान गए हैं उनके काटने से बचा भी जा सकता है मगर तुम्हारे काटे कि काट के अभी नहीं बने हैं कोई मन्त्र नहीं बनी है कोई वैक्सीन हे विषधर तुम्हारे गरल से सुलग रही है धरा तो ये नाम आज से तुम्हारा हुआ सर्... Read more |
![]() ![]() सदियों से अपना आकलन करवाती रही मगर कभी ना खुद अपना आकलन किया बस खुद को सिर्फ़ एक गृहिणी का ही दर्जा दियाजब किसी ने प्रश्न कियाक्या करती हो तुम ?तब जाकर ये अहसास हुआसिर्फ़ "अर्थ"ही कार्यक्षमता का मापदंड हुआचाहे आर्थिक रूप सेमैं सक्षम नहींलेकिन घर का सबसे कमाऊ सदस्य मैं ... Read more |
![]() ![]() मुझे कुछ बात कहनी थी लेकिन मन कहीं ठहरे तो कहूँ मुझे कुछ काम करने थे लेकिन मन कहीं रुके तो करूँ मुझे कुछ पहाड़ चढ़ने थे लेकिन मन कहीं चले तो चलूँ ये प्रान्त प्रान्त से निकलतीं नदियाँ गंतव्य तक पहुँचने को आतुर नहीं जानतीं हर राह अंततः स्वयं तक पहुंचकर ही मुकम्मल होती है ... Read more |
![]() ![]() जाने कब गूंगे हुए एक अरसा हुआ अब चाहकर भी जुबाँ साथ नहीं देती अपनी आवाज़ सुने भी गुजर चुकी हैं जैसे सदियाँ ये बात न मुल्क की है न उसके बाशिंदों की लोकतंत्र लगा रहा है उठक बैठक उनके पायतानों पर और उनके अट्टहास से गुंजायमान हैं दसों दिशाएँ उधर निश्... Read more |
![]() ![]() कभी कभी फ़ुर्सत के क्षणों मेंएक सोच काबिज़ हो जाती हैआखिर मैं चाहती क्या हूँखुद से या औरों सेतो कोई जवाब ही नहीं आताक्या वक्त सारी चाहतों को लील गया हैया चाहत की फ़सलों पर कोई तेज़ाबी पाला पड गया हैजो खुद की चाहतों से भी महरूम हो गयी हूँजो खुद से ही आज अन्जान हो गयी हूँक... Read more |
![]() ![]() जब तब छेड़ जाती है उसकी यादों की पुरवाई सूखे ज़ख्म भी रिसने लगते हैं किसी को चाहना बड़ी बात नहीं मसला तो उसे भुलाने में है यूँ तो तोड़ दिए भरम सारे न वो याद करे न तुम फिर भी इक कवायद होती है आँख नम हो जाए बड़ी बात नहीं मसला तो उसे सुखाने में है ... Read more |
![]() ![]() ये उपकृत करने का दौर हैसंबंधों की फाँक पर लगाकरअपनेपन की धारअंट जाते हैं इनमेंमिट्टी और कंकड़ भीलीप दिया जाता है दरो दीवार को कुछ इस तरहकि फर्क की किताब पर लिखे हर्फ़ धुंधला जाएंफिर भी छुट ही जाता है एक कोनाझाँकने लगता है जहाँ सेसंबंधों का उपहारऔर धराशायी हो जाती है... Read more |
![]() ![]() कौन हो तुम?और क्यों हो तुम ?किसे जरूरत तुम्हारी ?न किसी बहीखाते में दर्ज होन किसी आकलन मेंन उन्हें परवाह तुम्हारीकीड़े मकौडों सेमरने के लिए ही तो पैदा होते होमौत से भागते फिरते होलेकिन कहाँ बच पाते हो?सरकार के लिए वोट बैंक भर होमान लो और जान लोतुम मरते रहोगेवो बस आंकड़े द... Read more |
![]() ![]() आज के कोरोनाकाल में जब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है तब भी मानव उससे हारे जा रहा है, आखिर क्या कारण रहे इस हार के, सोचने पर विवश हो जाते हैं. पिछले कुछ समय से जो अध्ययन मनन और चिंतन कर रही हूँ तो पाती हूँ आज हमारे रहन सहन, खान पान, आचार विचार और व्यवहार सब में इतनी तबदीली आ ... Read more |
![]() ![]() लॉक डाउन के माहौल में, कोरोना की फ़िक्र में मची चारों तरफ अफरा तफरी .....रात दिन सिर्फ एक ही फ़िक्र में गुजर रहे हैं सभी के.......दूसरी तरफ कामगारों का पलायन एक नयी समस्या बन उभरा तो सोचते सोचते कुछ ख्याल यूँ दस्तक देने लगे :नहीं होती घर वापसी किसी की भी कभी पूरी तरह जो गया था वो को... Read more |
![]() ![]() Hi,I am really glad that I have been nominated for the biggest award & recognition in the digital literature & publishing field - StoryMirror Author of the Year Award - 2019 by StoryMirror (https://storymirror.com), which is India's largest multilingual platform for readers & writers.Now I need your support to win the title. Please visit this link:https://awards.storymirror.com/author-of-the-year/…/qolr3vqrand click on the vote button. You will have to log in to StoryMirror to vote for me. Please Vote and help me to win this award!Read a huge collection of short stories in English by many writers across the globe. Online Stories for Free.... Read more |
![]() ![]() राजा ने आँख बंद कर ली हैराजा ने कान बंद कर लिए हैं राजा ने मुंह भी बंद कर लिया है राजा तभी बोलता है जब उसने बोलना होता है राजा तभी देखता है जब उसने देखना होता है राजा तभी सुनता है जब उसने सुनना होता है उससे पहले या बाद में के प्रश्न फ़िज़ूल हैं राजा अब बापू के बताये रास्ते पर च... Read more |
![]() ![]() आजकल न दुस्वप्न आते हैं न सुस्वप्न बहुत सुकून की नींद आती है अमन चैन के माहौल में सारी चिंताएं सारी फिक्रें ताक पर रख हमने चुने हैं कुछ छद्म कुसुम लाजिमी है फिर छद्म सुवास का होना और हम बेहोश हैं इस मदहोशी में स्वप्न तो उसे आयेंगे जिसने खिलाने चाहे होंगे आसमान में फूल ग... Read more |
![]() ![]() लडकियाँ आधी रात को भी अकेली बेधड़क कहीं भी जा सकेंगी . एक बार देश की डोर मेरे हाथ देकर तो देखो .मेरे गुजरात में रात को दो बजे भी लड़की स्कूटी पर अकेली कहीं भी जा सकती है .कर लिया विश्वास , दे दी डोर . मगर क्या मिला ?एक बार फिर जनता धोखा खा गयी . अब दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश या हैदरा... Read more |
![]() ![]() क्या बना रहे हो क्या बन रहे हैंक्या दिखा रहे हो क्या दिख रहे हैंतानाशाहों के राज में समीकरण बदल रहे हैंकभी धर्म कभी जातिकभी शिक्षा तो कभी मंदिर मस्जिदके नाम परहंगामों आंदोलनों के शोरसहमा रहे हैं भविष्यतो क्याआने वाली पीढ़ी सीख रही हैअपनी रीढ़ कैसे है सीधी करना?रोते हु... Read more |
![]() ![]() दिल माँ का किसी को समझ आता नहींफूल कौन सा है जो अंत में मुरझाता नहींवो देगी बद्दुआ तो भी दुआ बन जायेगीइतनी सी बात कोई उसे समझाता नहींतेरे गुस्से पर भी उसे गुस्सा आता नहींमगर तेरा बचपना है कि जाता नहींतेरे दर्द से पिघलती है जो दिन-ब-दिनउसकी हूक का मर्म तुझे समझ आता नहींत... Read more |
![]() ![]() धुआँ घुटन का किस फूँक से उड़ायें धंसे बेबसी के काँच अब किसे दिखायेंन हो सकी उन्हीं से मुलाकात औ गुजर गयी ज़िन्दगी अब किस पनघट पे जाके प्यास अपनी बुझायें मन पनघट पर जा के बुझा ले प्यास सखी पिया आयेंगे की लगा ले आस सखी वो भी तुझे देखे बिन रुक न पायेंगे फिर क्यों विरह से किया स... Read more |
![]() ![]() ए उदासियों आओइस मोहल्ले में जश्न मनाओकि यहाँ ऐतराज़ की दुकानों पर ताला पड़ा हैसोहर गाने का मौसम बहुत उम्दा हैरुके ठहरे सिमटे लम्हों से गले मिलोहो सके तो मुस्कुराओएक दूजे को देखकरयहाँ अदब का नया शहर बसा हैसिर्फ तुम्हारे लियेरूमानी होने का मतलबसिर्फ वही नहीं होतातुम भ... Read more |
![]() ![]() मित्रों मेरा दूसरा उपन्यास "शिकन के शहर में शरारत"और नया कविता संग्रह "प्रेम नारंगी देह बैंजनी"किताबगंज प्रकाशन से प्रकाशित होकर आया है जिनके बारे में सब सूचनाएँ नीचे दे रही हूँ :1किताब : प्रेम नारंगी देह बैंजनी (कविता संग्रह)लेखिका : वन्दना गुप्तामूल्य : ₹ 225/- (पेपरबैक ... Read more |
![]() ![]() दहशत का लिफाफा हर दहलीज को चूमता रहा और सुर्ख रंग से सराबोर होता रहा हर चेहरा फिर किसके निशाँ ढूँढते हो अब ?तुमने दहशतें बोयी हैं फसल लहलहा कर आयी है सदियों से अब कैसी अदावत तुम्हारे चेहरे की लुनाई है अब क्यों गायब?प्रायोजित कार्यक्रम बना डाला सबने अपना गुबार निकाल मार... Read more |
![]() ![]() बन चुकी है गठरी सी सिकुड़ चुके हैं अंग प्रत्यंग बडबडाती रहती है जाने क्या क्या सोते जागते, उठते बैठते पूछो, तो कहती है - कुछ नहीं सिर्फ देह का ही नहीं हो रहा विलोपन अपितु अस्थि मांस मज्जा भी शनैः शनैः छोड़ रही हैं स्थान रिक्त और कर रही है वो पदार्पण एक बार फि... Read more |
![]() ![]() मुझे बचाने थे पेड़ और तुम्हें पत्तियां मुझे बचाने थे दिन और तुम्हें रातें यूँ बचाने के सिलसिले चले कि बचाते बचाते अपने अपने हिस्से से ही हम महरूम हो गए हो तो यूँ भी सकता था तुम बचाते पृथ्वी और मैं उसका हरापन सदियों के शाप से मुक्ति तो मिल जाती अब बोध की चौख... Read more |
![]() ![]() मुझे ऊपर उठना था अपनी मानवीय कमजोरियों से आदान प्रदान के साँप सीढ़ी वाले खेल से मैंने खुद को साधना शुरू किया रोज खुद से संवाद किया अपनी ईर्ष्या अपनी कटुता अपनी द्वेषमयी प्रवृत्ति से पाने को निजात जरूरी था अपने शत्रुओं से दूरी बनाना उनका भला चाहना उनका भला सोचना ये चाहन... Read more |
![]() ![]() ओ उम्र के तीसरे पहर में मिलने वाले ठहर, रुक जरा, बैठ , साँस ले कि अब चौमासा नहीं जो बरसता ही रहे और तू भीगता ही रहे यहाँ मौन सुरों की सरगम पर की जाती है अराधना नव निर्माण के मौसमों से नहीं की जाती गुफ्तगू स्पर्श हो जाए जहाँ अस्पर्श्य बंद आँखों में न पलता हो जहाँ कोई सपना बस स... Read more |
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