Blog: एक प्रयास |
![]() ![]() चालीस पार की औरत के पास वक्त नज़ाकत नहीं भरता। थोक के भाव बिना मोल भाव के फर्शी सलाम ठोंकता है ।दिन रुपहले सुनहरे नहीं रहते, छा जाती हैं उन पर भी केशों की सफेदी ।सारा काम कर लो फिर भी वक्त मानो सांस रोके खड़ा हो और कहता हो अभी तो मैंने कदम ही रखा है , अभी तो मेरा जन्म ही हुआ ह... Read more |
![]() ![]() रो पड़ी श्वेता माँ की डायरी का ये पन्ना पढ़कर .'उफ़ , ममा आपको पहले से ही बोध हो गया था अपनी इस दशा का और एक हम बच्चे हैं जिन्होंने कभी भी आपकी बातों को सीरियसली नहीं लिया . ममा आप तो हमारे लिए हमारी ममा थी न . हमें कभी लगा ही नहीं कि आपको कुछ समस्या हो सकती है . शायद हमारी ये सो... Read more |
![]() ![]() हाय ! ये कैसा बसंत आया रीजब सब सुमन मन के कुम्हला गएरंग सारे बेरंग हो गएकिसी एक रूप पर जो थिरकती थीउस पाँव की झाँझर टूट गयीजिस आस पर उम्र गुजरती थीवो आस भी अब तो टूट गयीअब किस द्वार पर टेकूं माथाकिस सजन से करूँ आशाजब मन की बाँसुरी ही रूठ गयीहाय ! ये कैसा बसंत आया रीजब मन की क... Read more |
![]() ![]() अपने तराजुओं के पलड़ों मेंवक्त के बेतरतीब कैनवस परहम ही राम हम ही रावण बनाते हैंजो चल दें इक कदम वो अपनी मर्ज़ी सेझट से पदच्युतता का आईना दिखा सर कलम कर दिए जाते हैंये जानते हुए किसाम्प्रदायिकता का अट्टहास दमघोंटू ही होता हैनहीं रख पाते हमअभिव्यक्ति के खिड़की दरवाज़े खु... Read more |
![]() ![]() कोठी कुठले भरे छोड़ इक दिन चले जाना रे मनवा काहे ढूँढे असार जगत में ठिकाना रे चुप की बेडी पहन ले प्यारे हंसी ख़ुशी सब झेल ले प्यारे तेरी मेरी कर काहे भरता द्वेष का खजाना रे कोठी कुठले भरे छोड़ इक दिन चले जाना रे ........मोह ममता को कर दे किनारे कुछ खुद के लिए जी ले प्यारे फिर तो बा... Read more |
![]() ![]() देह का गणित “छोड़ दो मुझे, जाने दो, मरने दो मुझे.......मैं जीना नहीं चाहती, अरे मरने तो दो, क्या रखा है मेरे जीवन में अब? छोड़ क्यों नहीं देते” कहते कहते उसने अपना सर सीखचों पर पटकना शुरू कर दिया. बुरी तरह चीख चिल्लाये जा रही थी और खुद को लहूलुहान कर रही थी तभी कुछ नर्सेज ने उसके ... Read more |
![]() ![]() मैं भाग रही हूँ तुमसे दूरअब तुम मुझे पकड़ोरोक सको तो रोक लोक्योंकिछोड़कर जाने पर सिर्फ तुम्हारा ही तो कॉपीराइट नहींगर पकड़ सकोगेफिर संभाल सकोगेऔर खुद को चेता सकोगेकिहर आईने में दरार डालना ठीक नहीं होताशायद तभीतुम अपने अस्तित्व से वाकिफ करा पाओऔर स्वयं को स्थापितक्यो... Read more |
![]() ![]() ये वक्त चींटी की तरह काटता है. कैसे समझाऊँ? स्क्रॉल करते करते रूह बेज़ार हो जाती है , अपने अन्दर की अठन्नी अपना चवन्नी होना स्वीकार नहीं पाती. ये वक्त के केंचुए अक्सर मेरी पीठ पर रेंगते हुए झुरझुरी पैदा बेशक करते रहें लेकिन कभी हाथ बढ़ाकर तसल्ली के चबूतरे पर नहीं बिठा... Read more |
![]() ![]() कभी कभी पॉज़ बहुत लम्बा हो जाता है ...जाने कितना काम अधूरा रहता है लेकिन मन ही नहीं होता, महीनों निकल जाते हैं ऐसे ही...रोज एक खालीपन से घिरे, चुपचाप, खुद से भी संवाद बंद हो जहाँ, वहाँ कैसे संभव है अधूरेपन को भरना......शब्द भाषा विचार संवेदनाएं भावनाएं सब शून्य में समाहित.....खुद को... Read more |
![]() ![]() आजकल जाने क्यों मुँह फेरा हुआ है तुमने या फिर मुंह चुरा रहे हो मेरी समझ का मुहाना बहुत छोटा है और तुम्हारी कलाकारी का बेहद वृहद् हाँ, मानती हूँ कुछ मतभेद है हम में लेकिन सुनो कहा गया है न मतभेद बेशक हों लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए मगर तुमने तो मतभेद क... Read more |
![]() ![]() वो कौन सा गीत गाऊँ वो कौन सा राग सुनाऊँ वो कौन सा सुर लगाऊँ जो तेरी प्रिय हो जाऊँ मन का मधुबन सूना है ...तुम बिन...कान्हा बाँसुरी की तान टूट गयी जब से प्रीत तेरी रूठ गयी इक बावरी गम में डूब गयी अब कैसे तुम्हें मनाऊँ मन का मधुबन सूना है ...तुम बिन...कान्हा अब जैसी हूँ वैसी स्वीकार... Read more |
![]() ![]() कृष्ण तुम नहीं थे ईश्वरईश्वर होने और बनाए जाने में फर्क होता हैनहीं किये तुमने कोई चमत्कारये जो तप की शक्ति से प्राप्त शक्तियों कामचता रहा हाहाकारअसल में तो तुम्हारे द्वारा किये गए अनुसंधानोंका था प्रतिफलतो क्या अनुसंधान के लिएजिस लगन मेहनत और एकाग्रता की जरूरत हो... Read more |
![]() ![]() न जाने कौन था वो जिसने आवाज़ दी नाम लेकर - वंदना जाने स्वप्न था कोई या थी कोई कशिश इस जन्म या उस जन्म की यादों का न कोई शहर मिला यात्रा के न पदचिन्ह दिखेमैं ख़ामोशी की सीढ़ी चढ़ गयी कौन सा सिरा पकडूँजो तार से तार जुड़े पता चले किसकी प्रीत की परछाइयाँ लम्बवत पड़ीं न आवाज़ पहचान का स... Read more |
![]() ![]() काश वापसी की कोई राह होती है न ...दृढ निश्चय फिर छोड़ा जा सकता है सारा संसार और मुड़ा जा सकता है वापस उसी मोड़ से लेकिन क्या संभव है सारा संसार छोड़ने पर भी उम्र का वापस मुड़ना ?युवावस्था का फिर बचपन में लौटना वृद्धावस्था का फिर युवा होना है न ....मन को साध लो फिर जो चाहे बना लो कैसे ... Read more |
![]() ![]() मरघट का सन्नाटा पसरा है मन प्रेत सा भटका है जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है मैं तू वह में ही बस जीवन उलझा है ये कैसा मौन का दौर गुजरा है चुभती हैं किरचें जिसकी वो दर्पण चूर चूर हो बिखरा है जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम हर मोड़ पे इक हादसा ग... Read more |
![]() ![]() मैं भाग रही हूँ तुमसे दूरअब तुम मुझे पकड़ोरोक सको तो रोक लोक्योंकिछोड़कर जाने पर सिर्फ तुम्हारा ही तो कॉपीराइट नहींगर पकड़ सकोगेफिर संभाल सकोगेऔर खुद को चेता सकोगेकिहर आईने में दरार डालना ठीक नहीं होताशायद तभीतुम अपने अस्तित्व से वाकिफ करा पाओऔर स्वयं को स्थापितक्यो... Read more |
![]() ![]() मैं बनूँ सुवास तुम्हारी कृष्णा करो स्वीकार मेरी ये सेवाजाने कितने युग बीते जाने कितने जन्म रीते पल पल खाए मुझे ये तृष्णा मैं बनूँ सुवास तुम्हारी कृष्णा जाने कब बसंत बीता जाने कब सावन रीता चेतनता हुई मलीन कृष्णा मैं बनूँ सुवास तुम्हारी कृष्णाजाने कितनी प्यासी हूँ जन... Read more |
![]() ![]() पीर प्रसव की यूं ही तो नहीं होती हैइसमें भी तो इक चाहत जन्म लेती हैऔर जन्म किसी का भी होपीर बिना ना हो सकता हैयही तो प्रसव का सुख होता हैगर करें विचार शुरू से तो बीजारोपण से लेकर प्रसव वेदना तकएक सफ़र ही तो तय होता हैजो नयी संभावनाओं को जन्म देता हैतो क्यों ना आजसफ़र का द... Read more |
![]() ![]() मेरी सीमितताएँसीमित संसाधन सीमित सोच उठने नहीं देते तल से मुझेफिर कैसे एक नया आसमां उगाऊँहोंगे औरों के लिए तुम चितचोर भँवरे माखनचोर नंदकिशोर लड्डूगोपाल और न जाने क्या क्या मगर इक नशा सा तारी हो गया है जब से तुम्हारा संग किया मेरे लिए तो मेरी 'वासना'भी तुम हो और 'व्यसन'भ... Read more |
![]() ![]() राम जाने क्यों हम तुम्हें मानव ही न मान पाए महामानव भी नहीं ईश्वरत्व से कम पर कोई समझौता कर ही न पाए शायद आसान है हमारे लिए यही सबसे उत्तम और सुलभ साधन वर्ना यदि स्वीकारा जाता तुम्हारा मानव रूप तो कैसे संभव था अपने स्वार्थ की रोटी का सेंका जाना ?आसान है हमारे लिए ईश्वर बन... Read more |
![]() ![]() मुझ सी हठी न मिली होगी कोई तभी तो तुमने भी चुनी उलट राह ... मिलन की दुखी दोनों ही अपनी अपनी जगह दिल न समंदर रहा न दरिया सूख गए ह्रदय के भाव पीर की ओढ़ चुनरिया अब ढूँढूं प्रीत गगरिया और तुम लेते रहे चटखारे खेलते रहे , देखते रहे छटपटाहट फिर चाहे खुद भी छटपटाते रहे मगर भाव पुष्ट क... Read more |
![]() ![]() पूछना तो नहीं चाहिए लेकिन पूछ रही हूँ क्या जरूरी है हर युग में तुम्हारे जन्म से पहले नन्हों का संहार ...कंसों द्वारा कहो तो ओ कृष्ण जबकि मनाते हैं हम तुम्हारा जन्म प्रतीक स्वरुप सोचती हूँ यदि सच में तुम्हारा जन्म हो फिर से तो जाने कितना बड़ा संहार हो सिहर उठती है आत्मा क्य... Read more |
![]() ![]() मित्रता किसने किससे निभाई ये बात कहाँ दुनिया जान पाई निर्धन होते हुए भी वो तो प्रेम का नाता निभाता रहा अपनी गरीबी को ही बादशाहत मानता रहा उधर सम्पन्न होते हुए भीअपने अहम के बोझ तले तुमने ही आने/अपनाने में देर लगाई तुम्हारे लिए क्या दूर था और क्या पास मगर ये सच है नह... Read more |
![]() ![]() तुम थे तो जहान में सबसे धनवान थी मैं अब तुम नहींतुम्हारी याद नहीं तुम्हारा ख्याल तक नहीं तो मुझ सा कंगाल भी कोई नहीं वो मोहब्बत की इन्तेहा थी ये तेरे वजूद को नकारने की इन्तेहा है जानते हो न इसका कारण भी तुम ही हो फिर निवारण की गली मैं अकेली कैसे जाऊँ?मुझे जो निभाना था , नि... Read more |
![]() ![]() उलझनों में उलझी इक डोर हूँ मैं या तुम नही जानती मगर जिस राह पर चली वहीं गयी छली अब किस ओर करूँ प्रयाण जो मुझे मिले मेरा प्रमाण अखरता है अक्सर अक्स सिमटा सा , बेढब सा बायस नहीं अब कोई जो पहन लूँ मुंदरी तेरे नाम की और हो जाऊँ प्रेम दीवानी कि फायदे का सौदा करना तुम्हारी फितर... Read more |
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