कटे हुए पंख रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’एक निरंकुश बादशाह को मरते समय उसके बाप ने कहा, “बेटा,प्रजा शेर होती है.बादशाह की कुशलता इसी में है कि शेर पर सवार रहे. नीचे उतरने का मतलब है मौत. इसलिए यह ध्यान रखना कि लोग गुलामी के आगे कुछ न सोच सकें. जनता में जो सरदार प्रसिद्ध हो जा... |
मै वारी जांवा-सीमा जैनशहर क्या, देश के नामी स्कूल की प्रिंसिपल हमारे घर आई। मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं था।सोशल साइट पर किसी से मैं बात कर रही थी। फोन को एक तरफ पटका और मैडम जी से बात करने बैठ गई।मैडम जी ने ही बात शुरू की-"क्या करती है आप रिया जी?"-"जी, एक कम्पनी का एकाउंट्स दे... |
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October 26, 2016, 10:54 am |
दो मुर्दे मालती बसंत दो मुर्दे थे .पास –पास ही उनकी कब्रें थीं .एक नया आया था और दूसरे को आए चर पाँच दिन हो चुके थे .नये ने पुराने मुर्दे से पूछा –“भाई ,यह जगह कैसी है ?तुमको कोई कष्ट तो नहीं है ?”“नहीं ,इस जगह तो मौज ही मौज है ,कष्ट का नाम नहीं ,आबहवा भी अच्छी है.”“तब तो ठी... |
ऊंचाइयांकमल चोपडा--यह असम्भव है --मगर क्यों ?--मेरे बापू कट्टर हिंदू हैं .वे अपनी लडकी का विवाह एक नीच जाति के लडके के साथ कभी नहींहोने देंगे. वे कहते हैं.....मैं तेरे लिए कोई ऊंची जाति का लडका देखूंगा --अगर तुम राजी हो तो मैं तुम्हारे बापू से बात करके देखूं ?--मैं तो राजी हूँ प... |
सतीश राठी “सुनो ,माँ का पत्र आया है .बच्चों सहित घर बुलाया है ---कुछ दिनों के लिए घर हो आते है .बच्चों की छुट्टियां भी है .”पति ने कहा .“मैं नहीं जाऊँगी उस नरक में सड़ने के लिए .फिर तुम्हारा गाँव तो गन्दा है ही ,तुम्हारे गाँव के और घर के लोग कितने गंदे है !”पत्नी ने तीखे और चिडचिड... |
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December 21, 2015, 7:01 pm |
श्याम बिहारी श्यामल चमरू की नवोढ़ा पतोहू गोइठे की टोकरी माथे पर लिए सामने वाली सड़क से जा रही थी.रघु बाबू ने पत्नी से कहा –देखो मैंने कहा था न कि गरीबों की बहुओं को कोई क्या देखने जायगा ! वह तो दो चार दिनों में गोइठा चुनने ,पानी भरने के लिए निकलेगी ही . &nb... |
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November 19, 2015, 5:38 pm |
ये पत्र ,ये लोग शशांक आदर्श राधेश्याम के परलोक सिधारने के दो घंटे बाद उनके प्रिय भतीजे ने शोक विह्वल होकर दो पत्र लिखे ,पहला पत्र स्नेही जनों के नाम था -"बंधु ,अत्यन्त दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि चाचाजी का देहावसान हो गया है। हाय !अब मुझ अनाथ को कौन सहारा देगा। " ... |
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September 8, 2015, 12:13 pm |
इज्जतअंजना अनिल खजानो बड़ी हडबडी में एक गठरी सी लेकर आँगन में आयी तो बेटे ने पूछ लिया –कहाँ जा रही हो माँ ? -कहीं नहीं ,तू यहीं बैठ .खजानो ने गठरी छुपा लेने की कोशिश करते हुए कहा –मैं अभी आती हूँ .—यह तुम्हारे हाथ में क्या है ?-कुछ नहीं ....कुछ भी तो नहीं ! कहती खजानो चोर की तरह बाह... |
काला सूरज अनिल चौरसिया -मैं सूरज हूँ .उन्होंने कहा .कल्लू ने सोचा ,मुझे क्या एतराज हो सकता है .नहीं शायद उसने कुछ नहीं सोचा. फालतू लफड़े में कौन पड़े ? उसे तो बस काम करना है .काम करता रहा .अचानक उसे बीमारी ने आ घेरा .अजीब सी बीमारी –जबान को लकवा मार गया .उसने हिम्मत नहीं हारी .जबा... |
पहचान लक्ष्मेंद्र चोपड़ाअंतिम यात्रा की तैयारियां हो रही थी। पूरा परिवार बहुत दुखी था। उसका दुःख देखकर तो अनजान भी दुखी हो जाता। वह जार जार रो रहा था ,उसके जीवन का सब कुछ चला गया था। अपना होश हवास तक नहीं था उसे।'चलो अंतिम दर्शन कर लो 'परिवार के बूढ़े पुरोहित ने अंतिम दर... |
शीशा रमेश बत्तरा 'सुनो कल रात मैंने स्वप्न में देखा की एक पर्स लेकर बाजार में घूम रही हूँ। ''कल तुम शॉपिंग पर नहीं जा पायी थी न !''तुम्हीं ने तो रोक लिया था। ''बस यही बात तुम्हारे मन में रह गई और तुम्हारा अवचेतन मन तुम्हें शॉपिंग पर ले गया। ''पर,एक बात समझ नहीं आई की मैं नग्न... |
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October 20, 2014, 2:10 pm |
हमका नहीं पढ़ाना चंद्रभूषण सिंह पूरी की पूरी दुनिया बदल गयी ,परन्तु वह शिक्षक नहीं बदला। जब उसे ज्ञात्त हुआ कि भोलाराम के बेटे राजेंद्र ने एक सप्ताह से विद्यालय आनाछोड़ दिया है ,तो एक दिन वह उसके घर पहुँच गया। जब शिक्षक ने भोलाराम से राजेन्द्र की अनुपस्थिति के ब... |
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September 26, 2014, 8:58 am |
बिन तले के जूतेसुखबीर विश्वकर्माहमेशा से यही होता था गांव में कभी कोई मौत होती या खुशी का मौका होता तोउन्हें जरूर बुलाया जाता वह खुद न जाकर चमरौंधे जूतों का एक जोडा भेज देतेजो उनके शामिल होने का प्रतीक थावे सैकडों बीघा जमीन के मालिक थे। गांव का एक हिस्सा उनकी जमीन जोत-... |
बहू का सवालबलरामरम्मू काका काफ़ी रात गये घर लौटे तो काकी ने जरा तेज आवाज पूछा---कहां च्लेगे रहन तुमका घर केरि तनकब चिंता फिकिर नांइ रहित हय। कोट की जेब से हाथनिकालते हुए रम्मू काका ने विलम्ब का कारण बताया।--जरा ज्योतिषीजी के घर लग चलेगे रहन ।बहू के बारे मा।म पूछय का रहयरम... |
अपनी बार पृथ्वीराज अरोडाउसने दुखः और रोष में अपनी बडी बहन को लिखा—दीदी ! दो लडकियों के बाद लडका होने की हमें बहुत खुशीहै,परन्तु जो फ़ेहरिस्त तुमने बना भेजी है,वह सामान कहां से लाएं ! घर की हालत तुमसे छिपी हुई नहीं है।फिर रीति-रिवाज तो आदमी के अपने ही बनाए हुए हैं, वह उसे त... |
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December 28, 2013, 5:12 pm |
प्यासी बुढ़िया शंकर पुणतांबेकर 'माई ,पानी देगी मुझे पीने के लिए ?''कहीं और से पी ले .मुझे दफ्तर की जल्दी है .''तू दरवाजे को ताला मत लगा .मुझ बुढ़िया पर रहम कर.मुझे पानी दे
दे .मैं तेरी दुआ मनाती हूँ -तुझे तेरे दफ्तर में तेरा रूप देखकर तरक्की मिले .''तू मेरी योग्यता क... |
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September 26, 2013, 6:38 pm |
बल्रराम अग्रवाल
रात्रि की शीत का अभाव पाकर सूर्य समय से कुछ पहले ही संध्या के आंचल में छिप जाना चाहता था।शरीर के ताप को चीर देने वाली शीत ने हल्के अन्धकार में ही नगर के मकानों
के द्वार बंद कर दिये थे।धीरे-धीरे घोर अन्धकार नगर की गलियों में बिखर गया। चिंघाडती वायु शीत का... |
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August 29, 2013, 12:07 pm |
जिंदगीमहावीर प्रसाद जैनशादी के बाद पहली रात उन्होंने अपने भावी जीवन को व्यवस्थित करने की योजनाएं बनाते हुए बितायी ण्दोनों ने अपनी सीमित आय को देखते हुए यह निर्णय भी लिया कि अभी कम.से.कम पांच साल अपने बीच बच्चा नहीं आने देंगे दोनों खुश थे बावजूद ढेर.सी दिक्कतों के। ... |
सतीश दुबेखाना लगा दूंहूं !मूड तो अच्छा है ?हां !स्मिता आजकल जिद नहीं करती ?हूं !अब बाजार भाव फिर बढने लगे हैं ।हां !पडोस के वर्माजी का बच्चा बहुत बीमार है ।हूं !थोडी मिठाई भी लीजिए ना !ऊं-हूं !नीता की शादी में चलेंगे ना ?हां-हां !आपकी क्लास-फैलो कुमुद आई थी,बडी देर तक इंतजार क... |
रोजी महेश दर्पणतडाक---तडाक---तडाक--- उसने पूरी ताकत से सोबती के गाल पर तीन
चार
तमाचे जड़ दिये।वह अभी और मारता पर पीछे से सत्ते
ने हाथ रोक लिया—पागल हुआ है क्या---डेढ हड्ड़ीकी औरत है मर गई तो—?उसके हाथ रुके तो जबान चल पड़ी—हरामजादी आंख फाड़-फाड़ कर क्या द... |
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February 21, 2013, 9:21 pm |
सत्याग्रही प्रभासिंहवे सत्याग्रह करने आई थी। भुखमरी, बेरोजगारी, पिछड़ापन दूर करने और शिक्षा व्यवस्था को नया मोड़ देने के लिए।वे राजनीति नहीं समझती थीं फिर इन सारी समस्याओं से ग्रस्त थी। जाड़े की हडडी कंपा देने वाली सर्द रातों के लिए , एक कम्बल तक उनके पास नहीं था। औ... |
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January 12, 2013, 11:13 am |
सत्याग्रही प्रभासिंह
वे सत्याग्रह करने आई थी। भुखमरी, बेरोजगारी, पिछड़ापन दूर करने और शिक्षा व्यवस्था को नया मोड़ देने के लिए।
वे राजनीति नहीं समझती थीं फिर इन सारी समस्याओं से ग्रस्त थी। जाड़े की हडडी कंपा देने वाली सर्द रातों के लिए , एक कम्बल तक उनके पास नह... |
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January 12, 2013, 11:13 am |
मकानरमेश जैन मैं अब इस का सामना नहीं कर सकता । मेरी अंतिम इच्छा है कि
मकान के तले दबकर मर जाउं। अब इस मकान का
अल्लाह ही मालिक है। इस मकान में शांति
नाम की कोई चिडि़या नहीं चहकती । शांति के विषय में मेरी कोई व्याख्या नहीं है। ... |
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December 15, 2012, 12:40 pm |
पुल बोलते हैंकैलाश जायसवाललम्बा और सूना प्लेटफार्म। सीमेन्ट के शेडस से टकराती तिरछी घनी बूंदें । मध्यरात्रि के आलोक में पटरियों पर गिरती उछलती और बिखरती बूंदों का अटूट कम प्लेट फार्म की परिधि के परे गहरा अंधेरा । अंधेरे में उभरते कई अनगिनत आकृतियों के अस्थिर आभास ... |
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September 11, 2012, 8:14 am |
अनीता वर्मा के लघुकथा संग्रह दर्पण "झूठ ना बोले" का लोकार्पण करते हुए भगीरथ , रतन कुमार सामरिया ,बीच में अनीता वर्मा !... |
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