जो दिये के तल अँधेरा रह गया था उस दिवालीइस दिवाली उस तमस् को भी नया दिनमान देनाकुछ अँधेरे झोपड़ों पर याद रखना इक नजऱदेखना अबकी चमकती हर हवेली के परेसंगमरमर की सतह पर रेंगने के मायनेदेखना तब आँख से तुम बूँद जब कोई झरेरोक लेना दौड़कर गिरते फलक के रंग सार... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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October 29, 2016, 3:01 pm |
वो सैनिक है आसमान सी छाती लेकर फिरता है,धरती के हक़ में सुभाष की थाती लेकर फिरता है।वो धागा कितना दृढ़ होगा, जिसे कभी न मिली कलाई,कैसी होगी बहन वो जिसने, सौंप दिया इकलौता भाई,वो माँ भी कैसी माँ होगी, जो माँ का दर्द समझती है,घर में बूढी माँ भूखी रहकर भी, बड़ी धनी रहती है,भूखे जिन... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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October 28, 2016, 3:41 pm |
वो सैनिक है आसमान सी छाती लेकर फिरता है,धरती के हक़ में सुभाष की थाती लेकर फिरता है।रातों के अधियारों में भी, उसकी नींद जगी रहती है,अंधड़ रेत सहारों में भी, उसकी आँख खुली रहती है,स्वप्नों के गलियारों में, उसकी बन्दूक तनी रहती है,दर्रों मैदान पहाड़ों में, कर्तव्यज्योति जगी र... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
वो सैनिक है आसमान सी छाती लेकर फिरता है,धरती के हक़ में सुभाष की थाती लेकर फिरता है।हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, जिद्दी स्वांसों की हलचल है,जमा हुआ है रक्त, धौंकनी चलती है, कैसा ये बल है,अग्निपरीक्षा पल पल देता, सीने में भरकर हुँकार,खौल उठता है शोणित सुनकर, धरती की एक करुण पु... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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September 30, 2016, 12:43 pm |
नवगीत - तू दंड दे मेरी खता हैऐ मनुज तूकाट मुझकोदंड दे मेरी खता है,खोदकर अपनीजडें हीमृत्यु से क्यों तोलता है?धार दे चाकू छुरी में, और पैनी कर कुल्हाड़ी,घोंप दे मेरे हृदय में, होश खो पी खूब ताड़ी,जान ले मेरीहिचक मतबेवजह क्यों डोलता है?रुक गया क्यों, साँस लेने की जरूरत ही तुझे क... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
ऐ मनुज तूकाट मुझकोदंड दे मेरी खता है,खोदकर अपनीजडें हीमृत्यु से क्यों तोलता है?धार दे चाकू छुरी में, और पैनी कर कुल्हाड़ी,घोंप दे मेरे हृदय में, होश खो पी खूब ताड़ी,जान ले मेरीहिचक मतबेवजह क्यों डोलता है?रुक गया क्यों, साँस लेने की जरूरत ही तुझे क्या,मौत से मेरी मरेगा कौन, क... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
उस दिनआँखों में आँखें डालकर तुमने कहा था कि किताब हो तुम अगर किताब हूँ तो पढ़ो तो कभी कभी पढ़ीं कई किताबें तुमने जरूरत की कहो या स्वार्थ की किसी परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए पर मेरी जिंदगी की किताब ने तुम्हारी कोई परीक्षा ली ही नहीं बस दी है अपने किताब होने की परीक्षा ... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
तुम वही हो न,जिसकी पलकों के इशारे बादलों को आकार और समय को पल पल बदलने के गुर सिखातें हैंतुम वही हो न जिसके होंठों के आकार जब चाहें मौसम में ख़ुशी और उदासी ले आते हैं तुम वही हो न जिसकी आँखों के सम्मोहन से चाँद तारे और सूरज एक निर्धारित गति से घूमते रहते हैं तुम वही हो न जिस... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
मैं पुरूष पाषाढ़ कह कर, मुझको ठुकराओ न तुम आसमां का रंग गुलाबी यदि तुम्हारे होंठ से है घुमड़कर घन घन बरसना पत्थरों की चोट से है तुम्हारी साँसों से समंदर में कहीं लहरें उठी हैं अब मुझे आषाढ़ कह कर मुझसे घबराओ न तुममैं पुरूष पाषाढ़ कह कर मुझको ठुकराओ न तुम जोड़कर अपने तुम्हारे ... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
मैं खता हूँरात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगनतोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँमैं खता हूँरात भर होता रहा हूँ आँख रोयी या न रोयी बूँद जो पलकों पे सोयी मोतियों सा पोर पर रख जीत कर खोता रहा हूँमैं खता हूँरात भर होता रहा हूँ छलक जो आये प... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
"खुशबू सीली गलियों की"के बारे में लिखने के लिए मुझे बहुत देर हो चुकी है शायद। पता नहीं किसी कविता संग्रह के बारे में लिखने के लायक हूँ मैं या नहीं परन्तु एक संग्रह है जिसके बारे में मैं कुछ लिखना चाहता हूँ। संग्रह का नाम है "खुशबू सीली गलियों की"जिसमें संगृहीत हैं सीमा दी... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
मैं ही क्यों आखिर, हर बार टूटता हूँ?हर जगह छूटता हूँ,मैं ही क्यों आखिर, हर बार टूटता हूँ?मैसूर में खोया जो, कावेरी के जल में,इतिहास की धरती पर, रिमझिम से मौसम में,उस खोये कतरे को,हर जगह ढूंढता हूँ ....हर जगह छूटता हूँ,मैं ही क्यों आखिर, हर बार टूटता हूँ?इस ईंट के जंगल से, क्यों मो... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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January 14, 2015, 8:57 pm |
शत प्रतिशततुम होती होतो ये सच हैकि सब कुछमेरे मन का नहीं होतामेरी तरह से नहीं होतामेरे द्वारा नहीं होतामेरे लिए नहीं होताये भी सच हैकि मैं कवितायेँ नहीं लिख पाताकिताबें नहीं पढ़ पाताज्यादा काम नहीं कर पातामैं मशीन नहीं बन पातादूसरे शब्दों में मैं वो सब कुछ नहीं कर पा... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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October 20, 2014, 4:09 pm |
मैं खुश रहता हूँ,आज कल भीतुम्हारे बिना भी पर तुम्हे पता है कि मुझे कितनी हिम्मत जुटानी पड़ती है कितनी जद्दोजेहद करनी पड़ती है कितनी मेहनत करनी पड़ती हैकितना समझाना पड़ता है बरगलाना पड़ता है खुद कोकितना सचेत सावधान रहना पड़ता है हर पल हर क्षण अपने सपाट सर्द चेहरे पर मुस्कान ... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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October 17, 2014, 4:52 pm |
एक वृक्ष की शाख हैं हमसाथ हैं हम, हाथ हैं हम,एक वृक्ष की शाख हैं हम,विंध्य हिमाचल से निकली जो,उस धारा की गति प्रवाह हम,मार्ग दिखाने इक दूजे को,बुजुर्ग अनुभव की सलाह हम,फटकार हैं हम, डांट हैं हम, एक वृक्ष की शाख हैं हम।बचपन का उत्साह हम ही हैं,खेल कूद की हम उमंग हैं,जीवन के हर ए... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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October 15, 2014, 6:40 pm |
क्षणिका - जल्दी बीतो नजल्दी बीतो न,दिन,रातऔर दूसरे समय के टुकड़ों ...तेज चलो नघडी की सुईयोंधक्का दूँ क्या ...ये टिक टिकजल्दी जल्दी टिक टिकाओ न …तुम्हारा क्या जाता हैपर मेरा जाता है।-- Neeraj Dwivedi-- नीरज द्विवेदीPlease be a follower and do not forget to share with your friends.... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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October 14, 2014, 9:52 pm |
तू पिघल रही थीआँखों सेमोटे मोटे आँसूढुलक रहे थे गालों परबोझ लिए मन में पहाड़ साबैठ रहा था जी पल पलऔर दो आँखें देख रहीं थींपाषणों की भांति अपलकपिघल रहा था उनमें भी कुछभीतर भीतरज्यों असहाय विरत बैठा हो कोईसब कुछ पीकरजो बीत रहा वो करे व्यक्तशब्दों में चाह अधूरी होमन सिसक ... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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September 7, 2014, 5:20 pm |
मेरी तन्हाईयाँआज पूछती है मुझसेकि वो भूले बिसरे हुए गमजदा आँसूजो निकले तो थेतुम्हारी आँखों की पोरों सेपर जिन्हें कब्र तक नसीब नहीं हुयीजमीं तक नसीब नहीं हुयीजो सूख गए अधर में हीतुम्हारे गालों से लिपट करतुम्हारे विषाद के ताप सेवही आसूँ जिन्होंने जिहाद किया थाअपने घ... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
तरस रहीं दो आँखें बस इक अपने कोमोह नहीं छूटा जीवन का,छूट गए सब दर्द पराए,सुख दुख की इस राहगुजर में,स्वजनों ने ही स्वप्न जलाए,अब तो बस कुछ नाम संग हैं, जपने को।कब से तरस रहीं दो आँखें, अपने को।जर्जरता जी मनुज देह की,पर माटी से मोह न टूटा,अपने छूटे सपने टूटे,किन्तु गेह का नेह न... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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August 23, 2014, 12:13 pm |
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें,आसमान में फर फर देखो,फहर रहा भगवा ध्वज अपना,कर्म रहा पाथेय हमारा,रचा बसा है बस इक सपना,एक हो हिन्दुस्तान हमारा, मात्र यही प्रण साध चलें,चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।अडिग हमारी निष्ठा मन में,लक्ष्य प्राप्ति की कोशिश ... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
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August 19, 2014, 10:19 am |
मेरठ पर न बोल सके तो जरा सहारनपुर पर बोलो,जबरन धर्म बदलने की इस कोशिश पर ही मुँह खोलो,क्या चुप ही रहोगे जब तक पीड़ित रिश्तेदार न होगा,समय यही है अरे सेकुलर मुँहबंदी का रोजा खोलो।-- नीरजPlease be a follower and do not forget to share with your friends.... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
हाँ मनाऊँगा,मनाऊँगा न तुम्हें तो मनाना भी पड़ेगा तुमसे निभाना भी पड़ेगा तुम्हें दुनिया से हर मुश्किल से हर दर्द से हर आह से हर बुरी नजर से छिपाना भी पड़ेगा अपने जेहन में अपनी स्वांसों में अपनी आँखों में अपने ख्वाबों में अपनी रातों में अपने शब्दों में अपने गानों में अपनी न... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
एक दिन मैं चल पड़ूँगा,दूरियाँ कुछ तय करूँगा।समय की झुर्री में संचित, उधार का जीवन समेटे,इस धूल निर्मित देह में ही, चाह की चादर लपेटे,कुछ जर्जर सुखों की चाह में, यौवन लुटाकर राह में,नि:शब्द शाश्वत सत्य को, चिरशांति को, मैं भी बढूँगा,एक दिन मैं चल पड़ूँगा,चाहे राह मेरी रोकने ... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
धूप सेएक रेशा खींचकरलपेटना शुरू कियातो साँझ की शक्ल मेंरात आ गयीउनके साथबीते पलों कोसमेटना शुरू कियातो समंदर के पहलू मेंबाढ़ आ गयीतुम्हे पता हैसाँझ और समंदर का क्या रिश्ता हैमुझे तो नहीं पतापर ये जरूर पता हैसाँझ आने पर समंदर में उफान जरूर आता है …उसके भीतर एक तूफान ज... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
बहुत नाजुक से होते हैंगुलाबी रंग के रिश्तेमगरभरोसे के सहारे कीजरूरत तोयहाँ हर रंग को होती है। -- नीरज द्विवेदी (Neeraj Dwivedi)Please be a follower and do not forget to share with your friends.... |
जिजीविषा - नीरज द्विवेदी...
Tag :Gulabi Rang ke Rishte
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