भीड़तंत्रऔरभीरुतंत्रजोमिलबैठेएकसाथलोकतंत्रकेकातिलकरतेलोकतंत्रकीबात।दामनपरइनकेदेखियेहैकितनेकितनेदागप्रजातंत्रकेमिथककोडसतेइच्छाधारीनाग।हरदिशासेआवाज़हैआयी, हैचारोऔरयेशोरलोकतंत्रकीलाज़ बचातेहत्यारे, पाखंडी, चोर।भ्रष्टाचारीइसप्रजाकायेभ्रष्टाचार... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
आज फिर अनकहे को कहने की कोशिश करता हूँ हवा में एक तस्वीर बनाई है अब रंग भरता हूँ दुनियां की लिखा पढ़ी का सार नहीं दिखतासच है बंद आँखों को विस्तार नहीं दिखता खुद को देख पाने का अच्छा अवसर पाया है हिम्मत कर परिंदा फिर गगन को आया है बंधनों की परिभाषाओं के सारे बंध तोड़न... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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January 2, 2012, 10:18 pm |
खुद की ही गहराइयों में साँस लेता है कोई, ख़ुशी में घुली उदासी , जान लेता है कोई. अँधेरे और उजाले में, छिड़ा है पुरजोर द्वंद्व, फिर कौन देखता है, दोनों को एक संग .... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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September 12, 2011, 2:58 pm |
शब्दों का यदि कहें ,आखिर सत्य क्या है यदि शब्द ही सत्य हैं तो प्रक्रति प्रदत्त क्या है माना ... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
ठगे से पैरों में हलचल दिखाई पड़ती है बदलते दौर कि आहट सुनाई पड़ती है . खुश हूँ , कि कली पर रुबाब आया है जमे हुए पानी पर फिर वहाब आया है .लौट आई है ,चमेली पर भूली सी महक याद आई है , बुलबुल को वही प्यारी चहक .खुश हूँ , खुशियों के सही मायने के लिए खुद को दिखा सके , उसी आईने के ... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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February 3, 2011, 1:20 pm |
गम कहूँ या हँसी ,लगता है कि झोंका हैकहता हूँ तो तन्हाई, देखता हूँ तो मौका है.कहता है वफ़ा जिसको,लगता है कि धोखा है तू है कहाँ खुद का ,फिर किसका भरोसा है.माना जिसे हकीकत,वस शब्दों का घेरा है अँधेरा है कहा जिसको, नामौजूद सबेरा हैजी रहा है जिसको, जो जीवन सा दिखता है सोचा है ... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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November 14, 2010, 3:58 pm |
ख़ुदा-ए-जहान का भी अजीब किस्सा है . क़त्ल हो रहा है जो, कातिल का ही हिस्सा है . बंद है आँखें उसकी और ध्यान गाफ़िल है. जो मिल रहा उसे वो नाम क़ातिल है. मरने वाले को बेशक़, मौत कि न समझ आई है. क़ातिल के है जो सामने खुद उसकी ही सच्चाई है. क़त्ल और क़ातिल ... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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September 15, 2010, 3:07 pm |
रूहें घरों में बंद पड़ी है देखो. राहों में तो मशीने नजर आती है समय गुजारना स्वभाव बन गया है रूहें खुद को कहाँ समझने पातीं है इंसान कि आखों का पानी जम गया है परायी सिसकियों कि कब याद आती है अपनत्व कि आढ़ में व्यापार पनपते हैं .अपनेपन कि परिभाषा कहाँ ... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
मत तौल के ये जिंदगी बोझ नहीं है.मत सोच के ये जिंदगी सोच नहीं है.जी गया है ,जिसने खुद को पा लिया है के प्याला जिंदगी का मजे से पिया है......बैसे तो दुनिया का कोई छोर नहीं है.चला जा कहीं भी, तू कोई और नहीं है वाह रे भगवन य... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
शायद कहीं ऐसी भी दुनिया रही हो की मीरा बेरोक नृत्य करती रही हो .ह्रदय में उमड़ा हुआ अंतहीन सावन होता हो कलियाँ खिलती रहें फूलों पर ताउम्र योवन हो. पर्वत का पत्थर व्रक्षों का वोझ सहता हो वेखोफ़ जहाँ जीवन एक साथ रहता हो .घोसलों में जहाँ उन्मुक्त सवेरा सा... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
दिल में अजीब सी उलझन है पर लगता यूँ है ,कुछ उम्मीद नजर आई है.सब कुछ भुला देने को मन करता है,तो ऐसी कौन सी बात याद आई है.नजरों के सामने भीड़ दिखाई पड़ती है,पर अन्दर तो दिखती तन्हाई है.अँधेरा भी है और सन्नाटा भी,पर देखा तो लगा, कोयल गाई है.मौसम थमा सा और खुला सा दिखाई देता है,फिर कह... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
हृदय में अजीब सी खिन्नता नजर आती है,ऐसा नहीं है कि आसपास व्यस्तता का अभाव हो ,बात तो यही है ये व्यस्तता आखिर चाह क्या रही है. शांत भाव से यदि अवलोकन किया जाये तो हम पते है , कि कोई कथनी में मगन है तो कई करनी में ......... लक्ष्यों कि भरमार है, जिन पर लक्ष्यों का अभाव है उन पर ... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
अच्छा लगे बड़ा ही , कुदरत का ये वर्ताव.चढ़ने को है सूरज ,बढ चली है नाव.वृक्षों की पत्तियों पर ,ओस का ये छिडकाव.अकड़ी सी टहनियों में , यूँ बला का घुमाव.नटखट सी नदी का , अलबेला सा ठहराव.महकी सी हवा का , शर्मीला सा बहाव .चहकते से पंछियों का ,तट पर ये जमाव .गुनगुनाते से दिल में ,उमड़... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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February 19, 2010, 9:14 pm |
कभी तो सोच मानव ,क्यों लिया धरती पे तूने ये जनम ,कभी तो याद करले ,प्रेम करना है तेरा पहला कदम ।कभी तो देख चलके बेधड़क सच्चाई के उस रस्ते ,कभी तो देख बनके तू बना इंसान जिसके बास्तें ।क्यों भर रहा है दम, जो तू चल पढ़ा गँवांने को ,होता रहा है दूर जिसको आया था तू पाने को ।क्या कर सक... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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October 22, 2009, 4:27 pm |
अध्यात्मिकता का सम्बन्ध स्वतंत्रता से है और जब व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वतंत्र होता है तो उसे खुश होने के लिए त्यौहार की जरुररत नहीं होती,हमारे देश में व्यक्तिगत जीवन को सामाजिक दायरे में इस तरह से बाँधा गया है ,की वह परतंत्रता को ही अपना जीवन लक्ष्य समझता रहे. और इस साम... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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October 13, 2009, 4:30 pm |
इंसानियत फकत है क्या, इस जिंदगी का मकसदहस्ती अपनी ही मिटाकर ,इंसा एक बनाना है ।रुक गया था वेबजह ही , चलते तुझे जाना है ।अकेला है दिले-इंसा,अकेला ही खुदा है अकेला ही आया था ,अकेला तुझे जाना है.रुक गया था बेबजह ........................ऊँची इन लहरों को, बेकार दी तब्बजो.डूबना ही तो पाना है, बस ड... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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September 27, 2009, 8:32 pm |
बनने लगा था इन्सां,पर अब रहा नहींगर यूंही था मिटाना ,तो फिर बनाया क्यों था खोता चला गया हूँ ,ज़माने की भीड़ में तोगर छोडनी थी ऊँगली तो अपना बनाया क्यों था बढ़ने की मैं अकेले ,कर ही रहा था कोशिशसहारा यूंही था छुडाना,तो साथ आया क्यों था भरोषा किया था इतना, की आँखे नहीं रही येगर ... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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September 22, 2009, 2:53 pm |
आज जब हम बहुत व्यस्त है ,तो रोजाना की दौड़-धूप में जीवन को जीना ही भूल जाते है. चेहरों की हंसी अजनबी हो जाती है तो इसी रोज की दौड़-धूप से ही कुछ हंसी के पलों को चुराने की कोशिश है,कुछ इस तरह --एक बस पकड़ रहा है,और एक सरक्योकि स्कूटर पंचर हो गया है और अब दफ्तर जाने में देर हो रही ह... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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September 16, 2009, 11:23 pm |
अब तक बुद्ध के बारे मे जो कुछ भी जाना है, यों समझिये राइ से ज्यादा कुछ भी नहीं पर जितना जाना है,उससे अनुमान तो लगाया ही जा सकता है की वह क्या ब्यक्तित्व होगा जिसने एक समय के बहाव को पूरी तरह से उलट के रख दिया हो; क्या जादू होगा उसकी वाणी मे जिसने उस समय, जब मानवता को तलबार से त... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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September 11, 2009, 1:08 am |
श्याम से कहो - पैसा कमाए मुरली तो बाद मे भी बजायी जा सकती है प्रातः काल का समय, नीला आकाश और कही दूर नदी किनारे के पास से आती हुई सुरीली बांसुरी की लय ,इस बासुरी की लय पर तो मानो सब की सब प्रकृति नाच उठी हो ,फिर इस मानब हृरदय मे तो झंकार बज ही उठेगी ,इस बासुरी की तान पर तो राधा स... |
प्रेम धुन (कविता संग्रह)...
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